Day 6: यीशु – पुनरुत्थान और जीवन
📖 मुख्य वचन:
“यीशु ने उस से कहा, ‘पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीवित रहेगा।’” – यूहन्ना 11:25
मनन:
यीशु का पुनरुत्थान हमें क्या सिखाता है? मरियम और मरथा के भाई लाजर की मृत्यु हो चुकी थी। चार दिन बीत चुके थे, और उनके घर का वातावरण आँसुओं और शोक से भरा हुआ था। हर तरफ निराशा और प्रश्न थे। मरथा ने यीशु से कहा—“प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई मरता नहीं।” (यूहन्ना 11:21)। यह शब्द केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि उनके हृदय का गहरा दर्द था। उन्हें विश्वास था कि यीशु की उपस्थिति मृत्यु को रोक सकती थी। लेकिन अब जब लाजर कब्र में था, तो उन्हें लगा सब कुछ समाप्त हो गया है।
ऐसे ही क्षणों में यीशु उनके पास आए और उन्होंने वह महान घोषणा की—“पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ।” यह वचन केवल उस समय के लिए नहीं था, बल्कि हर पीढ़ी और हर विश्वास करने वाले के लिए है। यीशु ने सिर्फ लाजर को मृतकों में से जीवित नहीं किया, बल्कि उन्होंने यह भी प्रकट किया कि उनके पास मृत्यु पर भी अधिकार है। मृत्यु, जो मनुष्य की सबसे बड़ी सीमा और भय है, वह यीशु के सामर्थ्य के सामने असहाय हो जाती है।
यीशु का यह चमत्कार केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक आत्मिक सत्य है। यह केवल भविष्य की आशा नहीं, बल्कि वर्तमान की वास्तविकता है। जो व्यक्ति यीशु पर विश्वास करता है, उसके लिए मृत्यु अंत नहीं है। उसका जीवन शाश्वत है। यह विश्वास हमें यह भरोसा देता है कि जब हमारा शरीर समाप्त हो भी जाए, तब भी हमारी आत्मा यीशु में जीवित है। मृत्यु केवल एक द्वार है, जिसके पार अनंत जीवन है।
पुनरुत्थान का अर्थ केवल शरीर का जीवित होना नहीं, बल्कि नए जीवन में प्रवेश करना है। जब हम यीशु को स्वीकार करते हैं, तब हमारे पुराने पाप, हमारी असफलताएँ, और हमारी आत्मिक मृत्यु सब समाप्त हो जाती है। हम एक नई सृष्टि बन जाते हैं (2 कुरिन्थियों 5:17)। यह नया जीवन केवल पाप से मुक्ति नहीं, बल्कि परमेश्वर के साथ एक जीवित और गहरा संबंध है। यह संबंध हमें हर दिन यह भरोसा दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं।
लाजर की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि कभी-कभी परमेश्वर देर से आता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन उसकी देरी उद्देश्यपूर्ण होती है। मरियम और मरथा ने सोचा कि सब समाप्त हो गया है, लेकिन यीशु ने उन्हें दिखाया कि परमेश्वर की सामर्थ्य सबसे निराशाजनक क्षणों में भी प्रकट हो सकती है। जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं, तब भी यीशु जीवन का नया मार्ग खोल देते हैं।
हमारे जीवन में भी कई बार ऐसे हालात आते हैं जब सब कुछ ठहरा हुआ लगता है। हमारे सपने टूट जाते हैं, रिश्ते बिखर जाते हैं, स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, या भविष्य अंधकारमय लगता है। इन परिस्थितियों में हम भी मरथा और मरियम की तरह कह उठते हैं—“प्रभु, यदि तू यहाँ होता…”। लेकिन लाजर की कहानी हमें याद दिलाती है कि यीशु अभी भी वही सामर्थी प्रभु हैं। जो मृतकों को जीवन देते हैं, वही हमारे टूटे हुए जीवन को भी पुनर्जीवित कर सकते हैं।
यीशु केवल अतीत में चमत्कार करने वाले नहीं हैं। वे आज भी जीवित और सामर्थी हैं। उनका पुनरुत्थान केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक जीवित गवाही है कि उनमें जीवन और आशा है। जब उन्होंने तीसरे दिन कब्र पर विजय पाई, तब यह स्पष्ट हो गया कि न मृत्यु, न पाप, और न ही शैतान उनकी सामर्थ्य के सामने टिक सकता है। यही कारण है कि हमारा विश्वास निष्फल नहीं है। हम ऐसे प्रभु पर भरोसा करते हैं जो जीवित है और जो आज भी हमारे जीवन में कार्य करता है।
जब हम निराशा, डर और हार का अनुभव करते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि वही यीशु जो लाजर को कब्र से बाहर बुला लाए, वह हमें भी बुला सकते हैं। वे हमारी मृतप्राय आशाओं को नया जीवन दे सकते हैं। वे हमारे ठहरे हुए हालातों को बदल सकते हैं। वे हमारे बंजर सपनों को हरा-भरा बना सकते हैं। यीशु का पुनरुत्थान इस बात का प्रमाण है कि परमेश्वर का अंतिम वचन हमेशा जीवन और आशा का वचन होता है।
लाजर की कहानी का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यीशु ने उनके शोक में आकर आँसू बहाए। इसका अर्थ यह है कि यीशु केवल दूर से चमत्कार करने वाले नहीं, बल्कि हमारे दर्द में सहभागी होने वाले प्रभु हैं। वे हमारे आँसुओं को देखते हैं, हमारे शोक को समझते हैं, और हमारे संघर्ष में हमारे साथ चलते हैं। यह उनकी करुणा और निकटता को प्रकट करता है। जब हम अपने जीवन की कठिनाइयों से गुजरते हैं, तो हम निश्चिंत हो सकते हैं कि यीशु हमारे साथ हैं।
इस गहन सत्य को समझते हुए हमें अपने जीवन की हर परिस्थिति को उनके हाथों में सौंप देना चाहिए। चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, हमें यह भरोसा रखना चाहिए कि यीशु में पुनरुत्थान और जीवन है। वे न केवल हमारे भविष्य के लिए आशा हैं, बल्कि आज के लिए भी शक्ति और शांति हैं। उनका पुनरुत्थान हमें यह विश्वास दिलाता है कि परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
आत्म-चिंतन:
- क्या मैं यीशु को अपने जीवन का पुनरुत्थान और जीवन मानकर भरोसा करता हूँ?
- क्या मैं कठिन परिस्थितियों में भी यह विश्वास रखता हूँ कि वे नई शुरुआत कर सकते हैं?
- क्या मेरा जीवन उनके जीवित होने की गवाही देता है?
प्रार्थना:
“हे प्रभु यीशु, तू ही पुनरुत्थान और जीवन है। मेरे निराशाजनक हालात में भी तू आशा और नया जीवन देता है। मुझे तुझ पर पूरी तरह भरोसा करने दे, और मेरा जीवन तेरे जीवित होने की गवाही बने। आमीन।”

