Day 3 – पिता की क्षमा और दया: परमेश्वर की बाहें हमेशा खुली हैं |
✝️ मुख्य वचन:
“यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।”
(1 यूहन्ना 1:9)
📖 मनन:
परमेश्वर को “पिता” कहना मात्र एक धार्मिक संबोधन नहीं है, यह एक गहरे और जीवित रिश्ते को प्रकट करता है। एक ऐसा संबंध जिसमें प्रेम है, करुणा है, और क्षमा की भरपूर धाराएँ बहती हैं। जब हम परमेश्वर को “पिता” कहते हैं, तो हम उसे केवल एक सृष्टिकर्ता के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे प्रेमी अभिभावक के रूप में स्वीकार करते हैं जो हमारे जीवन के हर उतार-चढ़ाव में हमारे साथ बना रहता है।
परमेश्वर केवल हमें प्रेम करता ही नहीं, बल्कि जब हम जीवन की कठिनाइयों में गिर जाते हैं, जब हम अपने दोषों, कमज़ोरियों या पापों में उलझ जाते हैं — वह हमें उसी स्थिति में छोड़ नहीं देता। वह झुककर हमें उठाने आता है। वह हमारी असफलताओं से शर्मिंदा नहीं होता, बल्कि उनमें भी हमें संभालने के लिए तत्पर होता है।
जब हम पाप करते हैं, तो वह हमें ठुकराता नहीं — बल्कि हमें वापस बुलाता है। वह क्षमा करने के लिए सदैव तैयार रहता है। उसकी क्षमा कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक पिता का कोमल हृदय है — जो अपने खोए हुए बेटे को वापस पाने के लिए बेसब्र रहता है।
परमेश्वर पिता की यह क्षमा और दया हमारे पापों से भी अधिक बड़ी है। वह हमें केवल क्षमा नहीं करता, बल्कि फिर से अपनाता है, नया अवसर देता है, और कहता है: “तू मेरा प्रिय पुत्र है — मैं तुझसे प्रसन्न हूँ।“
बहुत से लोग परमेश्वर को एक ऐसे न्यायाधीश के रूप में देखते हैं जो क्रोध से भरा है, कठोर दंड देता है, और बहुत दूर बैठा है — मानो वह हमारी हर गलती पर तुरंत सज़ा देने को तैयार हो। यह धारणा भय पर आधारित है, प्रेम पर नहीं। परंतु जब हम बाइबल को ध्यान से पढ़ते हैं, विशेषकर यीशु मसीह की शिक्षा को समझते हैं, तो हमें एक बिल्कुल अलग तस्वीर दिखाई देती है।
यीशु ने हमें परमेश्वर के एक और रूप से परिचित कराया — एक पिता जो दौड़कर अपने खोए हुए बेटे को गले लगाने आता है। लूका 15 में “खोए हुए पुत्र” की कहानी में, बेटा अपने पिता से विद्रोह करता है, अपनी संपत्ति लेकर चला जाता है, और पापमय जीवन में गिर जाता है। लेकिन जब वह टूटे हुए दिल और पश्चाताप के साथ लौटता है, तो पिता न तो उसका अपमान करता है और न ही तिरस्कार करता है। बल्कि वह उसे दूर से देखकर पहचानता है, उसकी ओर दौड़ता है, उसे गले लगाता है और स्वागत में भोज का आयोजन करता है।
यह दृष्टांत यह दर्शाता है कि परमेश्वर कोई क्रूर न्यायाधीश नहीं, बल्कि एक प्रेमी, क्षमाशील और धैर्यवान पिता हैं। वह न केवल हमारे लौटने का इंतज़ार करते हैं, बल्कि जब हम लौटते हैं, तो हमें पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं। उनकी दया और क्षमा की बाहें हर एक लौटने वाली आत्मा के लिए हमेशा खुली रहती हैं।
“क्षमा” केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रेम से भरा एक दिव्य कार्य है। यह केवल दोषमुक्त करना नहीं, बल्कि टूटे हुए हृदय को बहाल करना है। जब परमेश्वर क्षमा करता है, तो वह केवल पापों को मिटाता नहीं, बल्कि पापी को अपनाता है — जैसे एक पिता अपने खोए हुए पुत्र को गले लगाता है। यह क्षमा बदले में नहीं मिलती, बल्कि अनुग्रह के द्वारा दी जाती है।
दया परमेश्वर के चरित्र का मूल तत्व है। वह न्यायी अवश्य है, परंतु उसकी न्यायप्रियता उसके अनुग्रह में बाधक नहीं होती। बाइबल बार-बार कहती है कि वह “कोप करने में धीमा और करूणा में महान” है (भजन 103:8)। वह हमारे अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता, न ही हमारे अधर्मों के अनुसार बदला लेता है — क्योंकि वह चाहता है कि हम पश्चाताप कर उससे फिर जुड़ जाएं।
जब हम मन फिराकर उसके पास लौटते हैं, तो परमेश्वर हमें न केवल क्षमा करता है, बल्कि एक नई पहचान देता है। वह हमें शर्म और दोष से निकालकर धार्मिकता का वस्त्र पहनाता है। उसकी क्षमा हमें एक नया जीवन, एक नया उद्देश्य और एक नया आरंभ देती है।
इसलिए, क्षमा सिर्फ हमारे पुराने पापों को मिटाने का माध्यम नहीं है — यह एक आत्मिक पुनःस्थापन है, जो हमें परमेश्वर के साथ पुनः जोड़ती है, जैसे एक खोई हुई भेड़ अपने चरवाहे के पास लौट आती है।
🙏 प्रार्थना:
“हे कृपालु पिता, मैंने तुझसे दूर होकर जीवन जिया, पर तूने मुझे कभी नहीं छोड़ा। मेरी गलतियों को क्षमा कर और मुझे अपने प्रेम में पुनः स्थापित कर। यीशु के नाम में, आमीन।”
💡 आज का आत्म-चिंतन:
- क्या मैं परमेश्वर की क्षमा को पूरी तरह से स्वीकार करता हूँ, या अपने पापों का बोझ अब भी उठाए हुए हूँ?
- क्या मैं दूसरों को वैसे ही क्षमा करता हूँ जैसे परमेश्वर मुझे करता है?
Aatmik Manzil – आत्मिक यात्रा में हर दिन एक नया अध्याय।
“वह कोप करने में धीमा, और करूणा में महान है।” – भजन संहिता 103:8

