📅 Day 2 – परमेश्वर का प्रेम: एक पिता का बिना शर्त प्रेम |
✝️ मुख्य वचन:
“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया…”
(यूहन्ना 3:16)
📖 मनन:
पृथ्वी पर हमें कई प्रकार के प्रेम का अनुभव होता है — माता-पिता का स्नेह, जीवनसाथी की निकटता, मित्रों की आत्मीयता, और भाई-बहनों का साथ। ये प्रेम गहरे, मूल्यवान और जीवन को अर्थ देने वाले होते हैं। परंतु इन सभी में एक बात समान है — इनकी एक सीमा होती है। कभी परिस्थितियाँ, कभी स्वार्थ, तो कभी गलतफहमियाँ इन संबंधों को कमजोर कर देती हैं।
लेकिन जब हम परमेश्वर पिता के प्रेम की ओर देखते हैं, तो हम एक ऐसे प्रेम से रूबरू होते हैं जो इन सभी सीमाओं से परे है। यह प्रेम न शर्तों पर आधारित है, न हमारे व्यवहार पर निर्भर। यह प्रेम हमें हमारी कमजोरियों, पापों और असफलताओं के बावजूद स्वीकार करता है।
परमेश्वर ने यह प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कार्य में प्रकट किया — जब उसने अपने इकलौते पुत्र, यीशु मसीह को हमारे लिए बलिदान किया। “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया…” यह वचन न केवल सच्चाई है, बल्कि प्रेम का प्रमाण भी है।
यह प्रेम अनंत है — क्योंकि यह कभी समाप्त नहीं होता।
यह अटल है — क्योंकि यह बदलता नहीं।
यह बलिदानी है — क्योंकि यह स्वयं को देने को तैयार है।
ऐसा प्रेम हमें आत्म-ग्लानि से छुड़ाकर एक नई पहचान देता है — परमेश्वर की संतान के रूप में। यही सच्चा, स्थायी और आत्मा को छु लेने वाला प्रेम है।
बाइबल हमें यह गवाही देती है कि परमेश्वर का प्रेम मानवीय सीमाओं से परे है। रोमियों 5:8 में लिखा है — “जब हम पाप में थे, तब भी मसीह ने हमारे लिये प्राण दिए, और इस से परमेश्वर का प्रेम हम पर प्रकट होता है।” यह वचन एक ऐसी सच्चाई को उजागर करता है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं — कि परमेश्वर ने हमें उस समय भी प्रेम किया जब हम प्रेम के योग्य नहीं थे।
हमारी स्थिति पाप से ग्रसित थी, हमारी सोच स्वार्थी थी, और हमारे मार्ग परमेश्वर से दूर थे। लेकिन ऐसे समय में भी, उसने हमें त्यागा नहीं — बल्कि अपने प्रेम को बलिदान के माध्यम से सिद्ध किया। यह कोई भावनात्मक या केवल उपदेशात्मक प्रेम नहीं था, बल्कि ऐसा प्रेम था जो क्रूस तक गया।
परमेश्वर पिता ने अपने एकलौते पुत्र यीशु मसीह को हमारे लिए दे दिया — ताकि हमारा उद्धार हो सके। क्या आपने कभी कल्पना की है कि एक पिता अपने निर्दोष पुत्र को दोषियों के लिए दे दे? यह मानव समझ से परे है। लेकिन यही ईश्वरीय प्रेम की पराकाष्ठा है।
यह प्रेम हमें याद दिलाता है कि हमारी पहचान हमारे पापों में नहीं, बल्कि उसके प्रेम में निहित है। उसने हमें अपने पुत्र के लहू से खरीदा है — ताकि हम अब दोषी नहीं, बल्कि उसकी संतान कहलाएं।
परमेश्वर का प्रेम न केवल हमें स्वीकार करता है, बल्कि हमें बदलता और सशक्त भी करता है। यह कोई साधारण प्रेम नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रेम है जो हमें हमारी कमजोरियों, गलतियों और पापों के बावजूद भी अपनाता है। जब संसार हमें ठुकरा देता है, जब लोग हमें हमारी विफलताओं से आंकते हैं — तब परमेश्वर हमें वैसे ही स्वीकार करता है जैसे हम हैं, और फिर धीरे-धीरे हमें वैसा बनाता है जैसा वह चाहता है।
यह प्रेम केवल सांत्वना नहीं देता, बल्कि हमारे भीतर एक नई पहचान और नई आशा को जन्म देता है। यह हमें बताता है कि हम केवल गलती करने वाले प्राणी नहीं, बल्कि परमेश्वर के द्वारा प्रिय और मूल्यवान संतान हैं।
जब हम इस प्रेम को सच में स्वीकार कर लेते हैं, तो हमारा अंतर्मन बदलने लगता है। डर अब हमारे ऊपर शासन नहीं करता, शर्म हमारे जीवन की दिशा तय नहीं करती, और अस्वीकृति का बोझ हमें नीचे नहीं गिराता। इसके स्थान पर आता है विश्वास, सामर्थ्य और आत्म-सम्मान — जो केवल परमेश्वर के प्रेम में ही संभव है।
यीशु मसीह के माध्यम से प्रकट यह प्रेम हमें ना केवल बचाता है, बल्कि हमें नया जीवन जीने की शक्ति भी देता है — ऐसा जीवन जो विश्वास, आनन्द और शांति से भरा होता है।
🙏 प्रार्थना:
“हे प्रेमी पिता, तूने मुझसे वैसा प्रेम किया जैसा कोई कर नहीं सकता। मुझे आज अपने प्रेम की गहराई समझा, और उसी प्रेम में जीने की सामर्थ्य दे। यीशु के नाम में, आमीन।”
💡 आज का आत्म-चिंतन:
- क्या मैं परमेश्वर के प्रेम को महसूस करता हूँ या उसे केवल जानकारी के रूप में जानता हूँ?
- क्या मैं अपने आप को उसी तरह स्वीकार करता हूँ जैसे परमेश्वर ने किया?

