Day 6 – सुनने वाला परमेश्वर: विश्वासयोग्य पिता |

✝️ मुख्य वचन:

“और यह वह भरोसा है जो हमें उसके प्रति है, कि यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ भी मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है।”
(1 यूहन्ना 5:14)


📖 मनन:

सुनने वाला परमेश्वर: विश्वासयोग्य पिता| मनुष्य के हृदय की एक गहरी और मूलभूत आवश्यकता है — कोई ऐसा जो उसकी बातों को ध्यान से सुने, उसके दुःखों और संघर्षों को समझे, और समय पर उत्तर भी दे। जीवन की आपाधापी, सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत संघर्षों के बीच हम अक्सर खुद को अकेला, उपेक्षित और अनसुना महसूस करते हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई हमारी बात को समझने वाला नहीं है, न कोई दिल से सुनने वाला है। रिश्तों में भी कभी-कभी वो गहराई नहीं मिलती जिसकी हमें लालसा होती है।

लेकिन सुसमाचार हमें यह आश्वासन देता है कि हमारे पास एक ऐसा परमेश्वर है जो न केवल हमारी आवाज़ को सुनता है, बल्कि हमारे हृदय की गूंज को भी समझता है। भजन संहिता 34:17 में लिखा है, “धर्मी चिल्लाए, और यहोवा सुनता है, और उसको सब संकटों से छुड़ाता है।” परमेश्वर एक करुणामय पिता हैं, जो अपने बच्चों की पुकार पर चुप नहीं रहते। जब हम टूटे हुए, थके हुए या निराश होते हैं, तब भी वह हमारे निकट होता है। प्रार्थना के माध्यम से जब हम अपने दिल की बात उससे कहते हैं, वह केवल सुनता ही नहीं, बल्कि सही समय पर हमें सांत्वना, मार्गदर्शन और समाधान भी प्रदान करता है। यही विश्वास हमें आगे बढ़ने की शक्ति देता है — यह जानकर कि हम परमेश्वर के सामने कभी अनसुने नहीं होते। परमेश्वर कोई दूर और मौन ब्रह्मांड का संचालक नहीं है, जो केवल ऊपर से देखता है। वह तो हमारे अत्यंत समीप है — एक ऐसा प्रेमपूर्ण पिता जो न केवल सुनता है, बल्कि हमारे हृदय की प्रत्येक धड़कन को समझता है। वह हमारी चुप्पी में भी हमारी पुकार को पहचानता है। जब हमारी प्रार्थनाएँ शब्दहीन होती हैं, और हमारे आंसू ही हमारी भाषा बन जाते हैं, तब भी वह हमें पूरी तरह जानता है। वह किसी औपचारिकता का इंतजार नहीं करता — उसका प्रेम हमारे सबसे टूटे क्षणों में भी सक्रिय रहता है। उसका कान हमारी प्रत्येक आह, प्रत्येक कराह और प्रत्येक अधूरी प्रार्थना की ओर सदा खुला रहता है।

यशायाह 65:24 में वह कहता है, “वे पुकारेंगे भी नहीं, कि मैं उत्तर दूंगा; वे बात भी कर रहे होंगे, कि मैं सुन लूंगा।” यह वचन उसकी निकटता और तत्परता की गवाही देता है।

हमारे मानव स्वभाव की सबसे गहरी प्यास है — कोई ऐसा जो सुन सके, समझ सके, और उत्तर दे सके। और परमेश्वर उस प्यास का उत्तर है। वह केवल परमेश्वर नहीं, वह एक भरोसेमंद साथी है, जो कभी व्यस्त नहीं होता, और कभी चूकता नहीं। जब सब चुप हो जाते हैं, वह तब भी सुनता है — पूरी संवेदना और करुणा के साथ।

यीशु मसीह ने अपने जीवन और उपदेशों के माध्यम से हमें यह सिखाया कि हम स्वर्गीय पिता के पास निडरता और पूर्ण विश्वास के साथ आ सकते हैं। वह केवल हमारा उद्धारकर्ता नहीं, बल्कि हमारा मध्यस्थ, मित्र और सहायक भी हैं। उन्होंने स्वयं दुःख, पीड़ा और तिरस्कार का अनुभव किया, ताकि वे हमारे संघर्षों को गहराई से समझ सकें। जब हम टूटे हुए, थके हुए या निराश होते हैं, तब वह न केवल हमारे शब्दों को सुनते हैं, बल्कि हमारे आंसुओं की भी मौन भाषा को समझते हैं। यीशु मसीह हमारी कमजोरियों को बोझ नहीं, बल्कि हमारे करीब आने का अवसर मानते हैं। जब हम भीतर से बिखर जाते हैं, तब वह हमें अपने अनुग्रह की शांति में लपेट लेते हैं। वह हमारी आत्मा की कराह को सुनते हैं और भीतर से हमें शक्ति प्रदान करते हैं। उनके साथ हमारा संबंध किसी औपचारिकता पर नहीं, बल्कि जीवित विश्वास और प्रेम पर आधारित है।

मसीह के निकट आने का साहस हमें इस आश्वासन से मिलता है कि हम एक ऐसे प्रभु के पास आ रहे हैं जो हर परिस्थिति में हमारे साथ खड़ा रहता है। वह हमें न केवल समझते हैं, बल्कि हमारी आंतरिक टूटन को नई आशा और सामर्थ्य में बदल देते हैं। यही सच्चा सहारा और आत्मिक भरोसा हमें हर तूफ़ान में स्थिर बनाए रखता है।

उसकी सुनने की क्षमता असीम है, और उसकी प्रतिक्रिया समय पर और प्रेम से भरी होती है।

🙏 प्रार्थना:

“प्रिय पिता, तू मेरी हर पुकार को सुनता है — चाहे मैं कहूँ या न कहूँ। मुझे तेरी सुनवाई पर भरोसा रखने और धैर्यपूर्वक उत्तर की प्रतीक्षा करने की समझ दे। आमीन।”

💡 आज का आत्म-चिंतन:

  • क्या मैं परमेश्वर से अपने मन की बात खुले रूप से कहता हूँ?
  • क्या मैं सुनने वाले पिता पर भरोसा करता हूँ, भले ही उत्तर अभी न मिला हो?

Aatmik Manzil – जहां आत्मा बोलती है और परमेश्वर सुनता है।
“तेरे कान मेरी विनती की ओर लगें; मेरी दुहाई की सुन।” – भजन संहिता 130:2

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